Saturday, May 12, 2012

त्रिवेणी








मुझे ढूंढती है जैसे मेरी ही तलाश कोई 

साया सा चल रहा है  आसपास कोई... 



ये मेरे भरम हैं या कि आहट तुम्हारी ??










- वंदना 

8 comments:

  1. बहुत खुबसूरत......

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  2. सुन्दर प्रस्तुती |
    आभार आपका ||

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  4. खुद को ढूँढने की तलाश ताउम्र चलती है.

    सुंदर विचार.

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  5. भ्रम और आहटों पर हमारी बहुत सी उम्मीदें जीती हैं।
    सुंदर भाव।

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...