Tuesday, March 27, 2012

ग़ज़ल





देखा था खाब हमने कि  सितारे बदल गये 
आँखें  जब खुली तो सब नज़ारे बदल गये ..!

लहरों  का मिजाज़ है.. मुड़कर नही देखना 
इलज़ाम ये गलत है के किनारे बदल गये..!

अब  नींदें देखती है ..सपनो के इन्द्रधनुष को 
कोई बरसात गुजरी है   रंग सारे बदल गये !

जिंदगी अपने सफ़र पे रहती है सदा कायम 
क्या हुआ कि वक्त के जो इशारे बदल गये !

देखा था तुम्हे  वंदु   कभी सखियों में खेलते 
ये तन्हाई बताती है  शोक तुम्हारे बदल गये !

- वंदना 



13 comments:

  1. वाह! बहुत ही बढ़िया

    सादर

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  2. इल्जाम ये गलत है कि किनारे बादल गए...
    सुंदर गजल... सादर बधाई॥

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  3. बहुत खूबसूरत गजल ...




    आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29-०३ -2012 को यहाँ भी है

    .... नयी पुरानी हलचल में ........सब नया नया है

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  4. Lehron ka mijaz hai mudkar nahi dekhna...
    sundar panktiyan..
    shubhkaamnayen!

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  5. बेहतरीन ग़ज़ल ......

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  6. bahut pyaari ghazal bahut pasand aai.

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  7. बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..

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  8. खूबसूरत गज़ल

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  9. लाजवाब शब्द सयोंजन के साथ सुन्दर ग़ज़ल .

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  10. बहुत ही खुबसूरत गजल....

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  11. एक दुरुस्त गज़ल..काफी दिनों के बाद सुन्दर भाव की पन्तियाँ पढ़ने को मिलीं..

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...