देखा था खाब हमने कि सितारे बदल गये
आँखें जब खुली तो सब नज़ारे बदल गये ..!
आँखें जब खुली तो सब नज़ारे बदल गये ..!
लहरों का मिजाज़ है.. मुड़कर नही देखना
इलज़ाम ये गलत है के किनारे बदल गये..!
अब नींदें देखती है ..सपनो के इन्द्रधनुष को
कोई बरसात गुजरी है रंग सारे बदल गये !
जिंदगी अपने सफ़र पे रहती है सदा कायम
क्या हुआ कि वक्त के जो इशारे बदल गये !
देखा था तुम्हे वंदु कभी सखियों में खेलते
ये तन्हाई बताती है शोक तुम्हारे बदल गये !
- वंदना
NICE
ReplyDeleteवाह! बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
waah, bahut khoob..
ReplyDeleteइल्जाम ये गलत है कि किनारे बादल गए...
ReplyDeleteसुंदर गजल... सादर बधाई॥
बहुत खूबसूरत गजल ...
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29-०३ -2012 को यहाँ भी है
.... नयी पुरानी हलचल में ........सब नया नया है
Lehron ka mijaz hai mudkar nahi dekhna...
ReplyDeletesundar panktiyan..
shubhkaamnayen!
बेहतरीन ग़ज़ल ......
ReplyDeletebahut pyaari ghazal bahut pasand aai.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteलाजवाब शब्द सयोंजन के साथ सुन्दर ग़ज़ल .
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत गजल....
ReplyDeleteएक दुरुस्त गज़ल..काफी दिनों के बाद सुन्दर भाव की पन्तियाँ पढ़ने को मिलीं..
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