Thursday, October 27, 2011

सुन सखी ....







कुछ रिश्ते बेनाम होते हैं 
कुछ रिश्तों के नाम होते हैं 

बेनाम रिश्ते में कोई शर्त नहीं होती
सिर्फ प्रेम होता है 
वो क्यूं हैं .क्या हैं ..कब तक हैं 
इन सवालों के लिए 
वहाँ कोई जगह नही होती 
और शायद न ही जवाब होते है 
ये रिश्ता एक तरफ़ा हो या 
दोनों तरफ़ा ..अपनी सीमाएं खुद 
तय कर लेता है 
इस रिश्ते का आकाश 
सा फ़ैल जाना भी लाज़मी है 
और वक्त कि हवा कि 
ठिठुरन में सिकुड जाना भी 

.........................

मगर एक रिश्ते का नाम होता है 
 वो रिश्ता जो समर्पण 
विश्वास  और प्यार के वजूद 
का रिश्ता है ..जिसमे 
न होते हुए भी 
कुछ शर्ते हैं ..कुछ वादे 
कुछ कसमे हैं 
जो जिन्दगी कि बुनियाद 
भी है और आकार भी ...
जिसका एक तरफ़ा होना 
बैसाखी पर चलने जैसा है 

जो बंधा हुआ है अपनी
महत्वकांक्षाओ में  ...जिसे
वक्त के बदलते मौसम
सिर्फ फैलना सिखाते हैं
सुकड जाने कि इजाज़त
नही देते .!जिसका गौरव
घर के रहस्य कि तरह होता है
जो तभी तक गौरवान्वित है
जब अपने आप तक सीमित है

कोई अविश्वास कोई डर
शंकाओं के घेरे न बनाने पाए
यही इस रिश्ते कि गरिमा  भी है
और सफलता भी 
......................

- वंदना 

10-27-2011



21 comments:

  1. कविता एक बहुत ही व्यवहारिक और सार्थका बात कहती है।

    सादर

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  2. बहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है रिश्तों को ... सुन्दर रचना

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  3. बिल्कुल सही कहा।

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  4. ....सुन्दर प्रस्तुति....भाईदूज की शुभकामनाएं.

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  5. सुन्दर रचना!
    भइयादूज की शुभकामनाएँ!

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  6. rishton par bahut khoobsurti se likha hai.....

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  7. रिश्तों को टटोलती सुन्दर रचना!

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  8. बहुत सुन्दर!
    --
    कल के चर्चा मंच पर, लिंको की है धूम।
    अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।

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  9. बहुत खूब प्रस्‍तुति !!

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  10. ये मेरे लिए है ना .....शुक्रिया देने का तो सवाल ही नहीं :-) एक प्यारी सी झप्पी पातें हैं :-)

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  11. वन्दना जी ,बहुत प्यारी रचना |
    मन को छू गयी |
    आशा

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  12. आपकी पोस्ट की हलचल आज (29/10/2011को) यहाँ भी है

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  13. प्यारी सी सुन्दर रचना...

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  14. वाह ...बहुत खूब ।

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  15. खूबसूरत रचना,मिश्री की मिठास सी उनकही.

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  16. आने वाला पल,जाने वाला है---
    बस,मुठ्ठी में एक पल मोती सा,मेरा है,बस मेरा है.
    सत्य लिये हुए,आलेख.

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  17. बहुत सुन्दर!

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  18. रिश्तों की परतों को खोलती अच्छी रचना ...

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  19. अनुपम अभिव्यक्ति....
    सादर बधाई...

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  20. रिश्तों की सुन्दर व्याख्या ......

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...