जिंदगी का अहम् सबक सिखाया है मुझे
ख़्वाब ओ हकीकत में फर्क दिखाया है मुझे
कल रोते हुए तुमने ही लगाया था गले
भरी महफ़िल में आज गैर जताया है मुझे
अपनी सफाई में मेरे पास कुछ है ही नहीं
मेरी ही नजर में गुनहगार बनाया है मुझे
दोस्ती के जैसे अब मतलब ही खो गये
रिश्तों का ये कैसा सच पढ़ाया है मुझे
शिकायत नहीं तुमसे गिला खुद से रहेगा
मेरी नजरों में ही कितना गिराया है मुझे
नादानी है मिलने जुलने को रफाकत कहना
कड़वा है मगर सच दुनिया का बताया है मुझे
ए दोस्त इसे हम अपना ही पागलपन कहेंगे
तेरी याद ने आज फिर बहुत रुलाया है मुझे !
बहुत ही अच्छी रचना.....
ReplyDeleterishton ka kadwa sach padhna hi hota hai
ReplyDeleteलाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
ओह! दर्द से सराबोर रचना।
ReplyDeleteखूबसूरत लिखा है वंदना जी!!
ReplyDeleteek ravangi ke sath asardaar rachna ....
ReplyDeleteइस होली आपका ब्लोग भी चला रंगने
ReplyDeleteदेखिये ना कैसे कैसे रंग लगा भरने ………
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