दिल कि बेखुदी को किसका ख्याल आया
खिड़की के चाँद में ये कौन मुस्कुराया..
बे मांगे मुरादों को पनाह मिल गयी
टूटते तारे ने जब , दुआ में सर उठाया
कतरा कतरा टूटती बारिशों कि तरह
लम्हों कि आरजू ने मुझको आजमाया
चाँदनी में रास्ता वो जुगनू भटक गया
और जलते चिराग ने,अँधेरा गले लगाया
मौजो कि रवानी को किनारा कौन देता
कागज़ कि नाव को जैसे पानी में बहाया !
- वंदना
लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बे मांगें मुरादों को पनाह मिल गयी
ReplyDeleteटूटते तारे ने जब दुआ में सर उठाया...
वाह! सुन्दर गज़ल...
सादर बधाई...