Saturday, August 27, 2011

त्रिवेणी







 हवाओं में घुल गया कैसे  बादल कि धड़कन का शोर 
मोर पंख से बाँधी किसने ..सावन कि साँसों कि ड़ोर

दिल जानता भी कुछ नहीं और मानता भी कुछ नहीं !
  


-- वंदना 


3 comments:

  1. दिल जानता सब कुछ है, मगर मानता कुछ भी नहीं...
    सत्य की सुन्दर प्रस्तुति...
    सादर...

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  2. बहुत ही सुन्दर....

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...