बचपन कि वो बरसाते
जब स्कूल से आते वक्त
अक्सर भीगने का लुफ्त
लेने में मेरी किताबे भी
भीग जाया करती थी
और फिर मैं धूप का
इन्तजार करती थी
उन्हें सुखाने के लिए
आज समझ आया
चाहत और जरूरत में
कितना फर्क है
बरसातें मेरी चाहत है
और धूप जरुरत !
दुसरे शब्दों में कहूँ
तो तुम वही एक बरसात हो
जिसने भिगो दिया है
मेरे वजूद को ...
और मुझे जिंदगी से
धूप कि तलाश है ..
अजीब बात है
धूप सुखा सकती है
हमारे सीलेपन को
मगर भीगने के
उस सुखद एहसास को नहीं ..
जो हर बरसते मौसम में
हरा हो जाया करता है ...
" जिंदगी कि ये धूप
और तसव्वुर के मौसम
कौन किस्से हारे
कौन किसको जीते !
- वंदना
बरसातें मेरी चाहत है
ReplyDeleteऔर धूप जरुरत !
दुसरे शब्दों में कहूँ
तो तुम वही एक बरसात हो
जिसने भिगो दिया है
मेरे वजूद को ...
और मुझे जिंदगी से
धूप कि तलाश है ..
बहुत खूबसूरत नज़्म ...
तो तुम वही एक बरसात हो
ReplyDeleteजिसने भिगो दिया है
मेरे वजूद को ...
और मुझे जिंदगी से
धूप कि तलाश है ..
वाह.... यह बरसात और यह धूप ..दोनों के हैं अलग अलग रूप .....!
बहुत ही खुबसूरत बारिश की रचना....
ReplyDeletebahut achchi rachna hui hai vandana ji
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