Thursday, August 18, 2011

तसव्वुर के मौसम





बचपन कि वो बरसाते
जब स्कूल से आते वक्त 

अक्सर भीगने का लुफ्त 
लेने में   मेरी किताबे भी
भीग जाया करती थी

और फिर मैं धूप का
इन्तजार करती थी
उन्हें सुखाने के लिए

आज समझ आया
चाहत और जरूरत में
कितना फर्क है

बरसातें मेरी चाहत है
और धूप जरुरत !

दुसरे शब्दों में कहूँ
तो तुम वही एक बरसात हो
जिसने भिगो दिया है
मेरे वजूद को ...
और मुझे जिंदगी से
धूप कि तलाश है ..

अजीब बात है
धूप सुखा सकती है
हमारे सीलेपन को
मगर भीगने के
उस सुखद एहसास को नहीं ..
जो हर बरसते मौसम में
 हरा हो जाया करता है ...

" जिंदगी कि ये धूप
और तसव्वुर के मौसम
कौन किस्से हारे
कौन किसको जीते ! 


- वंदना


4 comments:

  1. बरसातें मेरी चाहत है
    और धूप जरुरत !

    दुसरे शब्दों में कहूँ
    तो तुम वही एक बरसात हो
    जिसने भिगो दिया है
    मेरे वजूद को ...
    और मुझे जिंदगी से
    धूप कि तलाश है ..

    बहुत खूबसूरत नज़्म ...

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  2. तो तुम वही एक बरसात हो
    जिसने भिगो दिया है
    मेरे वजूद को ...
    और मुझे जिंदगी से
    धूप कि तलाश है ..
    वाह.... यह बरसात और यह धूप ..दोनों के हैं अलग अलग रूप .....!

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  3. बहुत ही खुबसूरत बारिश की रचना....

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  4. bahut achchi rachna hui hai vandana ji

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...