Tuesday, August 2, 2011

ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर ये जीवन उलटी चाल चले ?




(इस कविता का भाव यही है के ...जीवन किसी के लिए अपनी दिशा नही बदलता ..जो जैसा है वैसा ही है और रहेगा..हमारे मन कि अज्ञानता इसे समझे या न समझे  !) 


क्यूं पश्चिम से दिन निकले ?
और क्यूं पूरब में सांझ ढले ?
ऐ मन भला क्यूं तेरी  खातिर 
ये   जीवन  उलटी चाल चले ?
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क्यूं नींदों में सूरज घर कर जाए ?
क्यूं    विरह में   न    रात जले ,
ये  अम्बर आखिर क्यूं झुक जाए 
क्यूं  चंदा का      वनवास  टले ?

ऐ मन भला क्यूं तेरी  खातिर 
ये   जीवन   उलटी चाल चले ?
- - - - - - - - - - - - - - 
बनते पतझड़ के   वो साक्षी
जिनसे कल  के मधुमास थे 
वही तरुण     अब नही रहेंगे 
जिनसे  बहारों के उल्लास थे 

बागवां   कि पीड़ा पर क्यूं 
पुष्पों  कि मुस्कान खिले ?

ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर 
ये जीवन  उलटी चाल चले ?
- - - - - - - - - - - - - -
राम  अहिल्या   करते  देखे 
एक  पत्थर के   तासीर को !
रघुकुल    रीत   नहीं दे पायी 
न्याय  सिया   कि पीर को !

मन कि  कंचित  कुंठाओं में 
क्यूं समर्पण कि ये रीत पले ?

ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर 
ये जीवन  उलटी चाल चले ?
- - - - - - - - - - - - - - 
ये सावन भला क्यूं पढ़ा करे 
प्यासे मरुथल कि तहरीर को 
क्यूं  गंगा सा  सत्कार मिले 
यहाँ   हर नदिया   के नीर को  

टूटी हुई   किसी   वीणा से ,
क्यूं सरगम कि तान मिले ! 

ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर 
ये जीवन उलटी चाल चले !
- - - - - - - - - - - - - - -
क्यूं पश्चिम से दिन निकले ?
और क्यूं पूरब में सांझ ढले ?
ऐ मन भला क्यूं तेरी  खातिर 
ये  जीवन   उलटी चाल चले ?

-- वंदना 

9 comments:

  1. आज 03- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सुन्दर भाव.....

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  3. बेहद गहन और सुन्दर रचना।

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  4. कविता जी सकारात्मकता का संदेश देती आपकी ये कविता पसंद आयी धन्यवाद......!

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  5. बहुत गभीर विषय को अपने भुत सहजता से वयक्त किया है...

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  6. bahut hi sundar
    vah keya bath hai

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  7. Naye tewar naya andaaz .... first time is tarah ki kavita padhi tumhaari...really very ture aur jo usage kiya hai words ka under rhythm I luv this

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  8. 'रघुकुल रीति नहीं दे पायी
    न्याय सिया की पीर को '
    ...............हृदयस्पर्शी प्रस्तुति

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...