क्यूं घिर आए बादल काले
आज ये चारों से ..
किसने दी आवाज इन्हें
पूछो जंगल के मोर से !
प्यासे तरुण किसे पुकारे
कोयल काली क्या गाए
क्यूं झूम उठा अम्बर सारा
क्यूं बहकी हैं आज फिजाएं..
इन आँखों कि प्यास बंधे
कैसे काज़ल कि ड़ोर से !
क्यूं घिर आए बादल काले
आज ये चारों और से ..
किसने दी आवाज़ इन्हें
पूछो जंगल के मोर से !
सूने तट ये किसे पुकारे..
बहती नदियाँ क्यूं बलखाये,
कैसी है ये तान हवा में
धुन बंसी कि कौन बजाये..
बाँध गया ये मन वैरागी
किसे पलकों कि कोर से !
क्यूं घिर आए बादल काले
आज ये चारों और से..
किसने दी आवाज़ इन्हें
पूछो जंगल के मोर से !
पर्वत बैठा सोच रहा है
क्यूं धरती इतना इतराए..
मोजों कि ये अजब रवानी
लहर लहर सागर लहराए..
कोई बचा ले साहिल को
इन लहरों के इस शोर से !
क्यूं घिर आए बादल काले
आज ये चारों और से ,
किसने दी आवाज़ इन्हें
पूछो जंगल के मोर से !
बूंदों से तन मन ये भीगा
गलियों से बरसात चली
ह्रदय के सूने पनघट पर
होले होले सांझ ढली
कान्हा मेरे तुझे पुकारूं
और मैं कितनी जोर से !
क्यूं घिर आए बादल काले
आज ये चारों और से..
किसने दी आवाज़ इन्हें
पूछो जंगल के मोर से !!
- वंदना
8/5/2010
8/5/2010
सुन्दर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteखूबसूरत भाव लिए हुए बहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteमौसम के अनुकूल सुन्दर गीत पढ़कर अच्छा लगा!
ReplyDeletekhubsurat rachana sarahniya hai .. badhayi ji /
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गेय रचना बन पडी है वन्दना जी ! गुनगुनाते-गुनगुनाते ये पंक्तियाँ और जुड़ गयीं, समर्पित हैं आपको ही -
ReplyDeleteयादें उमड़ीं घुमड़े बादल
बरसीं अखियाँ जोर से
रात कटी है कैसी मेरी
पूछे कोई भोर से .
ghunghru..kanha..mor..bhawmay karti rachna
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत आभार :)
ReplyDelete@ कौशलेन्द्र जी ......बहुत खूब :) शुकिया रचना से जुड़ने के लिए ..:)
सावन को और खुबसूरत दर्शाता आपका गीत... बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR POST
ReplyDeleteवाह …………अब तो कान्हा को आना ही पडेगा।
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