Friday, August 5, 2011

पूछो जंगल के मोर से !


क्यूं घिर आए बादल काले 
आज ये चारों से ..
किसने दी आवाज इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से !

प्यासे तरुण किसे पुकारे 
कोयल काली क्या गाए
क्यूं झूम उठा अम्बर सारा 
क्यूं बहकी हैं आज फिजाएं..

इन आँखों कि प्यास बंधे 
कैसे काज़ल कि ड़ोर से !

क्यूं घिर आए  बादल काले 
आज ये  चारों और से ..
किसने दी आवाज़ इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से  !


सूने तट ये किसे पुकारे..
बहती नदियाँ क्यूं बलखाये, 
कैसी   है ये   तान हवा में 
धुन बंसी कि कौन बजाये.. 

बाँध गया ये मन वैरागी 
किसे पलकों कि कोर से !


क्यूं घिर आए बादल काले 
आज ये  चारों और से..
किसने दी आवाज़ इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से ! 



पर्वत बैठा सोच   रहा है 
क्यूं धरती  इतना इतराए..  
मोजों कि ये अजब रवानी 
लहर लहर सागर लहराए..


कोई बचा ले साहिल को 
इन लहरों के इस शोर से ! 

क्यूं घिर आए बादल काले 
आज ये  चारों और से ,
किसने दी आवाज़ इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से !


बूंदों से तन मन ये भीगा 
गलियों से बरसात चली 
ह्रदय के सूने पनघट पर 
होले होले सांझ ढली 

कान्हा मेरे तुझे पुकारूं
और मैं कितनी जोर से !


क्यूं घिर आए बादल काले 
आज ये  चारों और से..
किसने दी आवाज़ इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से !!


- वंदना
8/5/2010




10 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  2. खूबसूरत भाव लिए हुए बहुत सुन्दर रचना ...

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  3. मौसम के अनुकूल सुन्दर गीत पढ़कर अच्छा लगा!

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  4. khubsurat rachana sarahniya hai .. badhayi ji /

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  5. बहुत सुन्दर गेय रचना बन पडी है वन्दना जी ! गुनगुनाते-गुनगुनाते ये पंक्तियाँ और जुड़ गयीं, समर्पित हैं आपको ही -

    यादें उमड़ीं घुमड़े बादल
    बरसीं अखियाँ जोर से
    रात कटी है कैसी मेरी
    पूछे कोई भोर से .

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  6. ghunghru..kanha..mor..bhawmay karti rachna

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  7. आप सभी का बहुत बहुत आभार :)


    @ कौशलेन्द्र जी ......बहुत खूब :) शुकिया रचना से जुड़ने के लिए ..:)

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  8. सावन को और खुबसूरत दर्शाता आपका गीत... बहुत सुन्दर..

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  9. वाह …………अब तो कान्हा को आना ही पडेगा।

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...