Sunday, June 19, 2011

वो बादल वो हवा वो बूंदों कि रिमझिम




जागती नींदों में सोया एक ख़्वाब जैसे 
मैं उसकी तन्हा रातों का महताब  जैसे 

उसके  हर सफ़हे पे लिखी हैं आयतें मेरी 
वो बिखरती हुई सी एक किताब जैसे 

उसके आँगन में बरसता हुआ मैं सावन 
वो कोई भीगता हुआ  सा  गुलाब जैसे 

मैं आँखों में उसकी महकता हुआ  गुल 
वो मेरी पलकों पे शबनम ओ आब जैसे 

वो बादल वो हवा वो बूंदों कि रिमझिम 
मैं ठहरा हुआ सा    कोई तालाब जैसे 

उसकी साँसों में खनकता मैं सितार कोई 
वो मेरा गीत  ग़ज़ल ,रूह ओ अज़ाब जैसे  


वन्दना 


13 comments:

  1. Bahut Khubsurat Gazal,
    Vandana Ji Badhai

    Plz visit my blog-
    karimpathananmol.blogspot.com

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  2. मैं आँखों में उसकी महकता हुआ गुल
    वो मेरी पलकों पे शबनम ओ आब जैसे

    खूबसूरत गज़ल

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  3. AnonymousJune 20, 2011

    kya keh diya hai vandna ji
    aapka blog mera fevret blog ho gaya hai
    apne blog par kuch likhu ya naa likhu
    par aapke blog par aaye bina dil nahi manta
    shabdo me ghar kar jata hoon main
    dhanyawaad, aise hi likhti raheiyega

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  4. बहुत खूब .. लाजवाब गज़ल है ... उसकी तह रातों का माहताब देर तक साथ देता है ...

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  5. सुन्दर गजल...

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  6. सुन्दर गजल...

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  7. बहुत उम्दा ग़ज़स!
    पढ़कर आनन्द आ गया!

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  8. क्या बात है ! नाइंसाफी न हो खुबसूरत नज़्म ...बधाई जी /

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  9. उसकी साँसों में खनकता मैं सितार कोई
    वो मेरा गीत गज़ल, रूह और अजाब जैसे.

    बेहतरीन गज़ल हरेक शेर वजनदार और असरदार.

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  10. bahut hi behatrin gajal.sunder shabdon main likhi hui dil ko choonewali bemisaal najm.badhaai aapko.




    please visit my blog.thanks.

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  11. मैं आँखों में उसकी महकता हुआ गुल
    वो मेरी पलकों पे शबनम ओ आब जैसे

    वाह ...बहुत खूब।

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...