अक्सर जब ख़ुद पर हँसती हूँ
तो आँख भर आती है ,
लोग मेरे चेहरे की खिलखिलाहट ढूंढते है
जब कभी ख़ुद से शिकायत होती है
तो मेरी पलके.... सिसकते हुए
लोग मेरे चेहरे की खिलखिलाहट ढूंढते है
जब कभी ख़ुद से शिकायत होती है
तो मेरी पलके.... सिसकते हुए
दिल का साथ नही देती ,
और आँखे बेहया सी खामोश रह जाती है !
जब पापा मेरी नादानियों को
और आँखे बेहया सी खामोश रह जाती है !
जब पापा मेरी नादानियों को
हंसकर भुला देते है यूँ ही
तो जाने क्यूं वो छोटी छोटी
गलतिया भी गुनाह बन जाती है,
अपना ही स्वामित्व सजाये देता है
दिल के कानून से दफाएँ लग जाती है,
और जब गुस्से में बडबडाती हुई
माँ.. जब डाट देती है
तो दफाएँ सब हट जाती है
और सजाये माफ़ हो जाती है **
पापा के शख्त प्यार में ..
पापा के शख्त प्यार में ..
कठोर व्यवहार में..
अटूट विश्वास में.. ,
अटूट विश्वास में.. ,
आशा भरी आंखों के
स्नेह अपार में ..
माँ के दुलार में ...
माँ के दुलार में ...
सच्चे संस्कार में..,
गुस्से में बहने वाली
गुस्से में बहने वाली
एक निर्मल सी धार में ..
झूठी फटकार में .
जब जब ख़ुद को
परखती हूँ...तो जिन्दगी
निखरती जाती है..
निखरती जाती है..
निखरती जाती है ..
'वन्दना '
bahut hi pyaari si rachna...:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ...
ReplyDeleteपितृ दिवस पर खूबसूरत रचना बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeletetrue feeling from heart. bahut khoob likhaa.
ReplyDeletetoo good.