Thursday, February 24, 2011

my best friend :)


ये कविता अपनी एक बचपन कि दोस्त के लिए 
उसके बर्थडे पर लिखी थी ....
जिसे कविता बनाने कि ज्यादा कोशिश नहीं कि ..
इसलिए बहुत साधारण सी है !.

  

तुझे पता है 
हमने जिंदगी के 
21 साल जी लिए हैं
जिंदगी के बीते सफ़र 
बचपन के वो शुरुवाती लम्हे ,,
 जहां  तक याद के उजाले 
मेरी आँखों में ठहरे हुए हैं 
वहां आज भी मुड़कर देखती हूँ 
तू ही साथ दिखती है ...

दल्लान कि झूल पर झूलते हुए 
साथ में जामुन खाती हुई 

कभी रेत के टीलों पर 
मेरा हाथ पकडे दौडती हुई ..
कभी खेतो में मटर या चने तोडती हुई 
कभी चुपके से धूप में खड़ी
घर के अन्दर झांकती हुई 
कभी अपने घर के बहार 
मेरे आने का रास्ता देखती हुई 
कभी साथ में बैठी पढ़ती हुई 
स्कूल से आते वक्त 
उस छोटी नहर में 
मेरे साथ पैर धोती हुई ..
कभी पेड़ों कि ठंडी छाँव में 
बोरी पर बैठके खेलती हुई 
कभी दोपहर में गुड्डे 
गुडिया कि शादी में 
माँ कि चुनर ओढ़कर 
संग संग नाचती हुई !

बचपन से फांसला होते होते 
वक्त ने तुझसे भी कर दिया 
मगर दूरिया नहीं आयीं कभी ..
एक ऐसा साथ ही शायद 
रिश्तो में विश्वास पैदा करता है..

जब कभी भी फोन करती हूँ 
वो तेरा  excited  होकर
एक लम्बी सी हाये बोलना 
जैसे किसी दौड़ के बाद
फ़ोन उठाया हो तूने  ..
एक तपती सी दुपहरी में 
उसी नीम कि छाँव जैसा 
सुकून देता है आज भी 
तुझसे बात करना 

पागल है बिल्कुल ,
बेवजह  खिलखिलाना 
हर मुश्किल बात को 
हंसकर उड़ा देना ..
 पता नहीं मैंने तुझसे सीखा 
या तूने मुझसे ..

चाहती हूँ  तू हमेशा इसी तरह 
अलग रहे ..सबसे जुदा ..
हर बात को सादगी से challenge
करती हुई ..अपनी जमीं से 
जुड़कर आसमान तलाशती हुई !!






8 comments:

  1. शब्दों के मनकों से आपने जीवन यात्रा की माला को
    बहुत सुन्दर ढंग से पिरोया है!

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  2. खूबसूरत ...दोस्ती का खूबसूरत एहसास

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  3. wow...that is the most adorable gift....truest feelings...loved it :)

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  4. अपनी ज़मीं से जुड़ कर
    आसमान तलाशती हुई......

    बचपन के मधुर लम्हों को
    बहुत ही अनुपम शब्दों का लिबास दिया है आपने
    दालान की झूल , जामुन का स्वाद, माँ की चुनरी ...
    सभी कुछ,,, आंदोलित करता है

    अभिवादन स्वीकारें .

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  5. बधाई अध्यक्षा जी |यह रचना एक बार फिर से बचपन में खींच ले गयी |
    आशा

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  6. बेहतरीन रचना के लिए बधाई ।

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  7. bahut hi sundar ,dosti ki yaade bahut hi sunhari hoti hai .

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  8. आपको दिल से बधाई....
    सुंदर रचना के लिए.

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...