Monday, November 15, 2010

गीत ...



कुछ घुट रहा है साँसों में 
कुछ जल रहा है सीने में 
क्यूं पल पल मर रहे  हैं 
जिंदगी  तुझको जीने में !
................................
समझ आता नहीं कुछ 
ये   क्या   हो  गया  है 
ऐसा क्या पा लिया था 
     जो  हमसे  खो  गया  है -2

अपनी सी सूरत नहीं 
अब   इस  आईने में ..

कुछ घुट रहा है साँसों में 
कुछ जल रहा है सीने में 
क्यूं पल पल मर रहे  हैं 
जिंदगी  तुझको जीने में !
..............................
ये   कैसी है   सदायें 
हर पल बेचैनी बढ़ाएं 
बेफिजूल  सी उदासी 
     क्यूं रातो को जगाये -2

कतरा कतरा बिखर गए 
खुद  को आजमाने में ...

कुछ घुट रहा है साँसों में 
कुछ जल रहा है सीने में 
क्यूं पल पल मर रहे  हैं 
जिंदगी  तुझको जीने में !
............................
गगन के   टूटें तारें   
भीगें   नयन  हमारे 
किसको दें आवाज हम 
   तड़पकर किसे पुकारे -2

हुआ है कौन किसका 
कभी इस जमानें में 

कुछ घुट रहा है साँसों में 
कुछ जल रहा है सीने में 
क्यूं पल पल मर रहे  हैं 
जिंदगी  तुझको जीने में 
...........................
जो कभी  चाहा नहीं 
वो फिर  हुआ है क्यूं 
है जब आग नहीं 
     तो फिर धुंआ है क्यूं  -२


क्यूं जल गया मुंह अपना 
एक अमरित पीने में



कुछ घुट रहा है साँसों में 
कुछ जल रहा है सीने में 
क्यूं पल पल मर रहे  हैं 
जिंदगी  तुझको जीने में !


-वंदना 


8 comments:

  1. dil ki ghutan ko behtareen shabdo me dhaal ek sunder kavita ka roop diya hai. sunder lekhan.

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  2. है अगर आग नहीं
    तो फिर धुँआ क्यूँ है?
    शाश्वत प्रश्न उकेरा है
    सुन्दर रचना

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  3. बहुत ही दर्द भरी रचना.. ये घुटन वाकई में बहुत इम्तिहान लेती है..
    यूँ ही लिखते रहे...
    अपनी शर्म धोने अब कहाँ जायेंगे ??...

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  4. बहुत खूबसूरत गीत है ....लेकिन यह बेफिजूल सी उदासी में बेफिजूल क्यों लिखा है ?
    मुझे लगता है आप फ़िज़ूल सी उदासी कहना चाह रही हैं ..

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  5. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  6. सुंदर भाव पूर्ण लेखन .........

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  7. is tarah ke song apne voice mein record kar upload kiya karo... kyonki without voice geet ka maja nahi hota....:-) achcha likha hai

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  8. बहुत सुन्दर आप के गीत मे बहुत दर्द है

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...