Sunday, November 21, 2010

माफ़ी




आज कुछ पुराने पन्ने पलटे 
अपने आप से मिलना हुआ.
कुछ खूबसूरत पल मुस्कुराकर मिले.
मानो खिल से गए हों 
मुझे लौटते देखकर ..
मगर अगले ही पल 
जाने क्यूं नाराज़गी में 
मुझसे मूँह  फेर लिया  ..
शिकायत भरी खामोशी 
ने कितने सारे इल्जाम 
जड़ दिए मेरे शर्मसार चेहरे पर ..
हया से गड़ गयी मेरी आँखे 
जमीर कि जमीं के भीतर तक   ..

मगर , मेरी आँखों के पानी में 
बह गयी मानो उनकी सारी नाराज़गी 
खिलखिलाकर हंस पड़े सब के सब मुझपर 
और मुझे जैसे फिर से जी उठने को 
हिम्मत कि एक चाबी
 मेरी उम्मीदों को सौंप दी ..

मगर चाबी अपने हाथो में लिए 
मैं आज बस यही सोच रहीं हूँ 


उस पागलपन के लिए मुझे 
तुम भी माफ़ तो कर दोगे ना ..??



14 comments:

  1. मोहब्बत मे ये सब तो चलता ही रहता है…………गिले शिकवों का दौर् और उस अहसास को सुन्दरता से पिरोया है।

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  2. maine ek alag buniyaad par kavita likhi thi par sayad main bhavo ko sahi shabd nahi de paayi ..isliye aapne jra sa alag samjha :( ...khair bahut bahut shukriyaa jo aapko pasand aayi :)

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  3. बहुत ही ख़ूबसूरत भाव हैं कविता के....
    उम्मीद है आपको माफ़ी जरूर मिलेगी....
    आपकी नज़र में कविता के भाव भी जानना चाहूँगा...

    यह हैं देश के सच्चे सपूत और आप इन्हें ही नहीं पहचान पाए .... . ...

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  4. बहुत ही सुन्दर कविता.

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  5. सुन्दर रचना

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  6. बिल्कुल भी नहीं माफ़ करेंगे जी........क्यों करे ? जों किया तो इतनी मासूमियत से नहीं पूछोगी ....Good one . I love this

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  7. कोमल अहसासों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  8. aapki itni sunder kavita ne man ko mugdh kar diya.

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  10. अच्छी सुंदर रचना मन की भावनाओ का सुंदर चित्रण ..........

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  11. bohot bohot khoobsurat rachna hai....bohot hu umda

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  12. सब माफ़ ही रहता है मुहब्बत में.
    मेरी कुछ पंक्तियाँ देखें:-

    फूल बाग़ों में ही नहीं खिलते,
    दिल के आँगन में भी तो खिलता है.
    प्यार में गलतियाँ नहीं होतीं,
    इनसे दिल को सुकून मिलता है

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  13. एक मासूम की तरह प्रार्थना की है आपने ..माफ़ी के लिए ..प्यार मैं यह जज्बात होते ही हैं , जिससे हमें सच्चा प्यार करते हैं उसके बारे में हम कभी बुरा नहीं सोच सकते हैं ...बस हर हाल में उसका भला चाहते हैं ...बहुत खूब ...शुक्रिया
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...