बिन पंखो कि ये उड़ारी अच्छी नहीं होती ,
सच मानो ये स्वप्न सवारी अच्छी नहीं होती !
आईना भी देखकर अब मुस्कुराने लगा है,
आँखों कि बेहिसाब खुमारी अच्छी नहीं होती !
जिसकी खातिर दुआ करने कि भी मनाही हो,
फिर उस चीज़ कि तलबगारी अच्छी नहीं होती !
टूटकर चाहो किसी को कोई बुरा नहीं , मगर..
अपने अहम् से बढ़कर वफादारी अच्छी नहीं होती !
कुछ खोकर कुछ पाने कि चाह ले बैठेगी एक रोज़,
यकीं मानो ये फिदरत ए जुआरी अच्छी नहीं होती !
"वंदना" जो खुद नहीं समझा वो दूसरो को समझाओ ,
समझ से आगे कि ये समझदारी अच्छी नहीं होती !
वाह वन्दना जी बहुत खूब लिखा है---
ReplyDeleteअईना भी देख कर मुस्कुराने लगा है आँखों की बेहिसाब खुमारी अच्छी नही होती
कुछ खो कर पाने की चाह ले बैठेगी एक दिन --- यकीं मानो ये फितरत ए जुआरी अच्छी नही होती
उमदा। बधाई।
समझ से आगे की समझदारी खूब है..
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब। दिल को छू गयी गज़ल। बधाई। सुबह भी कमेन्ट कर के गयी थी मगर छपा क्यों नही समझ नही आया। आभार।
ReplyDeleteसुन्दर रचना है!
ReplyDeleteसमझ से आगे की समझदारी अच्छी नहीं होती ...........सुंदर रचना
ReplyDelete3rd,4th sher very well said ..and last one superb
ReplyDeleteक्या बात है..सारे शेर एक से बढ़कर एक...बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeletebohot sahi kaha aapne....bohot khoob :)
ReplyDeleteवंदना जी बहुत खूब लिखती है आप मुरीद हुए आपके लेखन के
ReplyDeleteधन्यबाद