Monday, November 8, 2010

ये समझदारी अच्छी नहीं होती !





बिन पंखो कि     ये उड़ारी  अच्छी नहीं होती ,
सच मानो ये स्वप्न सवारी  अच्छी नहीं होती !

आईना भी देखकर    अब   मुस्कुराने लगा है,
आँखों कि बेहिसाब खुमारी  अच्छी नहीं होती !

जिसकी खातिर दुआ करने कि भी मनाही हो, 
फिर उस चीज़ कि तलबगारी  अच्छी नहीं होती !

टूटकर चाहो  किसी को   कोई बुरा नहीं ,  मगर.. 
अपने अहम् से बढ़कर वफादारी  अच्छी नहीं होती !

कुछ खोकर कुछ पाने कि चाह ले बैठेगी  एक रोज़,  
यकीं मानो ये फिदरत ए जुआरी  अच्छी नहीं होती !

"वंदना" जो खुद नहीं समझा  वो दूसरो को समझाओ , 
समझ से आगे कि  ये समझदारी  अच्छी नहीं होती !





11 comments:

  1. वाह वन्दना जी बहुत खूब लिखा है---
    अईना भी देख कर मुस्कुराने लगा है आँखों की बेहिसाब खुमारी अच्छी नही होती

    कुछ खो कर पाने की चाह ले बैठेगी एक दिन --- यकीं मानो ये फितरत ए जुआरी अच्छी नही होती
    उमदा। बधाई।

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  2. समझ से आगे की समझदारी खूब है..

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  3. हर शेर लाजवाब। दिल को छू गयी गज़ल। बधाई। सुबह भी कमेन्ट कर के गयी थी मगर छपा क्यों नही समझ नही आया। आभार।

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  4. समझ से आगे की समझदारी अच्छी नहीं होती ...........सुंदर रचना

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  5. 3rd,4th sher very well said ..and last one superb

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  6. क्या बात है..सारे शेर एक से बढ़कर एक...बहुत ही बढ़िया

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  7. बहुत खूब....

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  8. bohot sahi kaha aapne....bohot khoob :)

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  9. वंदना जी बहुत खूब लिखती है आप मुरीद हुए आपके लेखन के
    धन्यबाद

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...