अक्सर चांदनी रातो में
जब तारे जगमगाते थे
नींदों को मेरी न जाने
कौन से पर लग जाते थे
फकत मुझ से ही मिलने
जैसे चाँद जमीं पर आता था
दिल की परवाज के आगे
गगन ही छोटा पड़ जाता था
भला किया जो तुमने इसके
सारे ही पर काट दिए ..
मैं भी तो देखूं दिल का पंछी
आखिर कब तक तडफडायेगा !!
-वंदना
hehe, गज़ब !
ReplyDeleteलिखते रहिये ...
भला किया जो तुमने इसके
ReplyDeleteसारे ही पर काट दिए ..
मैं भी तो देखूं दिल का पंछी
आखिर कब तक तडफडायेगा !!
वाह क्या बात है बहुत अच्छी लगी रचना। कृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें। धन्यवाद।
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
हम्म ..दिल का पंछी बिना परों के उड़ता है ...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteभला किया जो तुमने इसके
ReplyDeleteसारे ही पर काट दिए ..
मैं भी तो देखूं दिल का पंछी
आखिर कब तक तडफडायेगा !!
बहुत सुन्दर भाव भरे हैं ।
ऐसे आपने अपने दिल का हाल सुनाया, के मेरे दिल को भी बात चुभी!
ReplyDeleteप्रशंसनीय कविता हैं, जज़्बात कि भरमार है...
बहुत ही खुबसूरत रचना...अपनी कलम का जादू यूँ ही बनाये रखें..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर मेरी नयी कविता संघर्ष
बहुत सुन्दर कविता....गहरे भाव लिए ...बधाई.
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"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...
भाव भरी अभिव्यक्ति.
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