Sunday, August 29, 2010

बज्म ए एहसास




इन इठलाती हवाओ से कोई तो आगाज मिले
लम्हे कुछ गुनगुना रहें है, आलम से कोई साज मिले


परिंदों को देख कर आज ये ख्याल आ गया
जिंदगी ! जाने कब इन साँसों को परवाज मिले ?

ये अनजान शहर है कोई पहचानता तक नहीं तुमको
क्यू बार बार पलटते हो ..किधर से आवाज मिले ?

संजीदा लोगो में बैठकर बेबात मुस्कुराते हो
फिर कैसे यहाँ किसी से तुम्हारा मिजाज़ मिले ?

तन्हाई ..बज्म ए एहसास कि मेहमान हुई जाती है
आज फिर इन धडकनों को शायद दिल का कोई राज़ मिले !

vandana
8/29/`10

7 comments:

  1. परिंदों को देख कर आज ये ख्याल आ गया
    जिंदगी ! जाने कब इन साँसों को परवाज मिले ?

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  2. ये अनजान शहर है कोई पहचानता तक नहीं तुमको
    क्यू बार बार पलटते हो ..किधर से आवाज मिले ?

    संजीदा लोगो में बैठकर बेबात मुस्कुराते हो
    फिर कैसे यहाँ किसी से तुम्हारा मिजाज़ मिले ?

    बेहद उम्दा ख्याल्………………सच्चाई से रु-ब-रु करवाते हुये।

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  3. संजीदा लोगो में बैठकर बेबात मुस्कुराते हो
    फिर कैसे यहाँ किसी से तुम्हारा मिजाज़ मिले ?
    --
    गजल के सभी शेर बहुत बढ़िया हैं!

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  4. इन इठलाती हवाओ से कोई तो आगाज मिले
    लम्हे कुछ गुनगुना रहें है, आलम से कोई साज मिले

    Pahle hi sher par waari jaaon ji....

    संजीदा लोगो में बैठकर बेबात मुस्कुराते हो
    फिर कैसे यहाँ किसी से तुम्हारा मिजाज़ मिले ?

    Baat to sochne waalih hai ji :-)

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  5. बहुत ही सारगर्भित रचना.....
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं....

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  6. wah...u pen down your emotions so well!!!

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...