हर एक झंकार कि कीमत को घूँघरू समझता है
ये पैर इस पायल कि अदब ओ आबरू समझता है
फकत इनकी ही बेजुबाँनी समझता नहीं कोई
ये अश्क सांसो से हवाओं कि सब गुफ्तगू समझता है
इसकी अपनी ही रवानी है अपना ही सफ़र है
ये दिल मेरा कहाँ जिंदगी कि दू ब दू* समझता है
पलकों कि सरहद के उस तरफ कि तीरगी में
महज एक जुगनू इन अंधेरो कि आरजू समझता है
जिगर कि हर खराँच को महरूमियत से भर देता है
वो जज्बातों के फटे पहरन पर हुनर ए रफू समझता है
मैं हर बार खुद को हारकर अपने अहम् से जीत जाता हूँ
कि शायद वो मेरी हर एक खामोश जुस्तजू समझता है
दू ब दू*= भागदौड
vandana
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeleteपलकों कि सरहद के उस तरफ कि तीरगी में
ReplyDeleteमहज एक जुगनू इन अंधेरो कि आरजू समझता है
जिगर कि हर खराँच को महरूमियत से भर देता है
वो जज्बातों के फटे पहरन पर हुनर ए रफू समझता है
मैं हर बार खुद को हारकर अपने अहम् से जीत जाता हूँ
कि शायद वो मेरी हर एक खामोश जुस्तजू समझता है
क्या खूब लिखा है... एक एक शब्द एक एक तसव्वुर को पैदा कर रहा है
बहुत ज़बरदस्त लिखती हैं आप, बधाई
बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल!
ReplyDeleteआप की रचना 03 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/2010/09/266.html
आभार
अनामिका
उम्दा है ,बधाई
ReplyDeleteजिगर कि हर खराँच को महरूमियत से भर देता है
ReplyDeleteवो जज्बातों के फटे पहरन पर हुनर ए रफू समझता है
मैं हर बार खुद को हारकर अपने अहम् से जीत जाता हूँ
कि शायद वो मेरी हर एक खामोश जुस्तजू समझता है
tum to gazal likhne mein expert hoti jaa rahi ho.....good one
bahut bahut shukriyaa tahe dil se aap sabhi :)
ReplyDeletethanks a lot :
फकत इनकी ही बेजुबाँनी समझता नहीं कोई
ReplyDeleteये अश्क सांसो से हवाओं कि सब गुफ्तगू समझता है
good one..
बहुत दिनों से दिल में तमन्ना थी कि कोई ऐसी कविता पढूं जो कुछ अलग सी हो... आज वो कविता (शायरी) मिल गयी
ReplyDeleteइस तोहफे के लिए दिल से शुक्रिया
कई पंक्तियाँ पढ़कर मन आनंदित हुआ
ReplyDeletekya kahun???.......
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