Thursday, July 29, 2010


इस दुनिया के मेले कितने गजब से हैं
मगर रिश्तो के हूजूम बड़े अजब से हैं ..

सूरत ए खुदाई कितनी मूरतो में पुजती है यहाँ
जानें सब हैं ..के ताल्लुक उसी एक रब से हैं ..

वो लम्हों कि शरारतें अब हमें याद नहीं
मत पूछ के हमें तुझसे मोहब्बत कब से है

दिल को ना कुछ देखने कि जिद हो गयी शायद ..
एक नजर भर के तुझे देखा जब से है

सूनी सूनी सी थी मेरे मन कि नगरिया
रहने लगी बड़ी चहल पहल यहाँ तब से है ...

एहसासों कि मेहरूमियत तो क्या कहियेगा
ये दिल में रहते बड़े ही अदब से हैं

परिभाषाएं कौन देगा पलकों कि नमी को
कोंन जानेगा ये अश्क कितने बेसबब से हैं.

3 comments:

  1. परिभाषाएं कौन देगा पलकों कि नमी को
    कोंन जानेगा ये अश्क कितने बेसबब से हैं.

    beautiful frindzzzz :) nice creation ...

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  2. ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

    ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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  3. आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...