आज ले चल री निन्दियाँ
ये उड़न खटोला
चंदा के शहर में ...
मैं पलकों पे सजाने को
सितारे तोड़ लाऊँगी..
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
waah bahut sundar bhav hai...
ReplyDeletemai palako pe sjane ko
sitare tod laungi...
waaah...bahut sundar bhav hai,,,,
ReplyDeletemai palako pe sajane ko,
sitare tod laungi..
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
ReplyDeletegud one again!
ReplyDeleteyaar tod lo... hamko bhi chahiye ...very good
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास ..
ReplyDeleteOne for me too.....
ReplyDelete