मैं खुद को सौप कर
अल्फाजो को एक रोज,
खुद कि कैद से
अपनी रिहाई लिखूंगी ..
.
कर उम्मीद तू ए दिल
मिलेगी जुबाँ एक रोज तुझे
मैं उसूलों को
जिन्दगी कि दुहाई लिखूंगी..
समेटकर ,कलेजे में
कैद पंछी के बिखरे हुए
सारे पंख, मैं एक रोज
उसे परवाज दूँगी ..
मैं तोडूंगी
एहसासों कि बेडिया .
.हर जज्बात का एक
आसमान लिखूंगी ..
धागा धागा पीर का सुलझाकर
मैं जिन्दगी कि प्रीत बूनूंगी
मोहब्बत कि हर रश्म के सजदे में
दुनिया के लबो पे गुनगुनाता
एक गीत लिखूंगी..
साहिल के रेत कि प्यास लिखूंगी
सागर कि तड़पती मौज लिखूंगी
मैं एक आजाद नज्म एक रोज लिखूंगी
खुद को अम्रता तुझको इमरोज लिखूंगी .
vandana singh
18/6/2010
मैं खुद को सौप कर
ReplyDeleteअल्फाजो को एक रोज,
खुद कि कैद से
अपनी रिहाई लिखूंगी ..
....nice one
Wow.....Blog bahut sundar lag raha hain...aur kya chitrakaari kar di hai yaar nazm mein....your writing is growing day by day.
ReplyDeleteसाहिल के रेत कि प्यास लिखूंगी
सागर कि तड़पती मौज लिखूंगी
मैं एक आजाद नज्म एक रोज लिखूंगी
खुद को अम्रता तुझको इमरोज लिखूंगी .
To Amrita ji hamne aapki nazm chori kar li :-)
वो परिंदा मेरी मुंडेर से बड़ी हैरत में उड़ा, कहीं दूर चलूँ यहाँ पिंजर ए दस्तूर बहुत हैं...; ऐ मोला ,मैं बसर करता रहूँ पंछी बनके हर जनम, इंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत हैं ...
ReplyDeleteIska font color change karo.....blog color se mil gaya hai
nazm dil ki geheraiyon tak utar gaya
ReplyDeleteaap mai shabdo ko sawarne ka be intehaan hunar hai
Nice one re vandu... :)
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
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