Monday, June 14, 2010





आसमां कि चादर पर जब सितारे जगमगाये रहते हैं..
चाँद कि पलकों पे कितने ख़्वाब झिलमिलाये रहते हैं..

चांदनी बासी धूप फांक कर आई हो जैसे शफ़क से,
जुगनूं जाने किस बात पर इतना शरमाये रहते है ..

मेरी आँखों में आईना देखती हैं इठलाती हुई वादियाँ
जाने क्यूं , कुछ खामोश नज़ारे सकपकाये रहते हैं..

ताल्लुक गुमसुम और फासले बहुत उदास होतें हैं
जाने क्यूं वो खुद से इतना घबराये रहते हैं..

मेरी तन्हा रातों कि गहन उदासी भारी पड़ेगी बज्म को
मूक अल्फाजों से ये बेबस अफ़साने झल्लायेरहते हैं .

इन एहसासों, ख्यालो से कोई साझा नहीं अपना
हम पीर कोई बेगानी सीने से लगाये रहते है ..

तपती हुई आँखों में कुछ ख़्वाब हैं जले भुने से ..
धुंए को कैद कर , अश्को से आग बुझाये रहते हैं ..

हर बार जानबूझकर कर लेतें हैं एक नादान खता
तजुर्बे ... हम से ... झुंझलाये रहते हैं .


vandana singh
6/14/2010

7 comments:

  1. Nice one....Aur ye wala sher to bahut hi badhiya hai -
    चांदनी बासी धूप फांक कर आई हो जैसे सफ़क से,
    जुगनूं जाने किस बात पर इतना शरमाये रहते है

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  2. तपती हुई आँखों में कुछ ख़्वाब हैं जले भुने से ..
    धुंए को कैद कर , अश्को से आग बुझाये रहते हैं ..

    हर बार जानबूझकर कर लेतें हैं एक नादान खता
    तजुर्बे ... हम से ... झुंझलाये रहते हैं ....superb lines...i loved the ghazal...excellent penning..:)

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  3. चांदनी बासी धूप फांक कर आई हो जैसे शफ़क से,
    जुगनूं जाने किस बात पर इतना शरमाये रहते है .

    तपती हुई आँखों में कुछ ख़्वाब हैं जले भुने से ..
    धुंए को कैद कर , अश्को से आग बुझाये रहते हैं ..

    Vaise to poori creation lajawaab hai lekin I love above

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  4. हर बार जानबूझकर कर लेतें हैं एक नादान खता
    तजुर्बे ... हम से ... झुंझलाये रहते हैं .

    तजुर्बे से लिखी .. खूबसूरत ग़ज़ल ...

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  5. आसमां कि चादर पर जब सितारे जगमगाये रहते हैं..
    चाँद कि पलकों पे कितने ख़्वाब झिलमिलाये रहते हैं..

    चांदनी बासी धूप फांक कर आई हो जैसे शफ़क से,
    जुगनूं जाने किस बात पर इतना शरमाये रहते है ..

    in dono ash,aar ki to tasveer banwa lo imagine karke...tumhare liye tumhe tumhara apna aasmaan mil jayega... nice write vandu...

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  6. thanks a lott everyone ...
    thnks swapnil :)

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