मेरे दिल कि बेख्याली से..
नींद कि दुश्मनी पुरानी है ..
जब जब जागती पलकों पर
स्वप्न गढ़ता है ............नींद
वक्त से पहले चली आती है....
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
wow...what a thought!
ReplyDeleteमेरे दिल कि बेख्याली से..
ReplyDeleteनींद कि दुश्मनी पुरानी है
mujhe ye line bahut pasand aayi vandna...
matlab neend nahi aati hai...sleeping pills mat lena.....consult to doctor :-)
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