उसकी मासूमियत पर कभी हिमायत नहीं आती,
जहन में फिर भी मगर शिकायत नहीं आती..
उस मुजरिम को सीने में कैद करके रखते ,
मगर हिस्से में अपने ये इनायत नहीं आती ..
खुद से बिगड़ना तो कोई जरा हमसे सीखे ,
मगर अपनों से करनी हमें बगावत नहीं आती ..
एहसास बाँवरे...पलकों पे.. बसने चले आये ,
संजीदगी जज्बात कि..बनकर अदावत नहीं आती ..
सपनो में ,ख्वाइशो में..., है उलझी एक पहेली सी,
क्यूं जिन्दगी बनकर एक सच्ची आयत नहीं आती..
बुजुर्गो ने समझाई थी चार लफ्जों में जिन्दगी,
भूल गये हैं .अब वो पुरानी कहावत नहीं आती..
बहुत खूब.. पहला शेर बढ़िया लगा..
ReplyDeleteखुद से बिगड़ना तो कोई जरा हमसे सीखे ,
ReplyDeleteमगर अपनों से करनी हमें बगावत नहीं आती ...wow! jawab nahi... hamare hi khayaal lagte hain
सपनो में ,ख्वाइशो में..., है उलझी एक पहेली सी,
क्यूं जिन्दगी बनकर एक सच्ची आयत नहीं आती...Simple kyonki zindgi hain........very good Vandana
@kush ji ....bahut bahut shuriya :)
ReplyDeletesanjay ji ..bahut bahut shukriya aapnse samay diya apna :)
ReplyDelete@ priya ...thanks a lott dear :)
ReplyDeleteबुजुर्गो ने समझाई थी चार लफ्जों में जिन्दगी,
ReplyDeleteभूल गये हैं .अब वो पुरानी कहावत नहीं आती..
vandana ji kya kbhub likha hai ... bahut accha likhti hai aap ... aage bhi or accha likha meri duwa hai aapke sath :)
खुद से बिगड़ना तो कोई जरा हमसे सीखे ,
ReplyDeleteमगर अपनों से करनी हमें बगावत नहीं आती ..
waak \kya baat hai...
yun hi likhte rahein...
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mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/
खुद से बिगड़ना तो कोई जरा हमसे सीखे ,
ReplyDeleteमगर अपनों से करनी हमें बगावत नहीं आती ..
....simple n sweet!!!
प्रशंसनीय ।
ReplyDeletehello vandana ji.
ReplyDeleteलेती है यहाँ जिन्दगी हर रोज नया इम्तिहान
बुजुर्गो कि दुआंओ का वो असर याद आता है ..
फुर्सत के दिन ..जब यूँ अकेले में गुजरते हैं
मुझे मेरी नानी का बहुत .वो घर याद आता है..
really great...
बुजुर्गो ने समझाई थी चार लफ्जों में जिन्दगी,
ReplyDeleteभूल गये हैं .अब वो पुरानी कहावत नहीं आती..
saare sher khoobsurat hain par ye wala mera fav.. :D