Friday, April 2, 2010

गजल


दिल में अपने र्द ए महताब रखते हैं

सच है   कि चेहरे पे नकाब रखते हैं..

खुद ही तोडा था जिसे शाख से कभी
किताब में वही सूखा गुलाब रखते हैं

सीख लिया मिलने जुलने का अदब 
मिलते है तो दूर कि आदाब रखते हैं

नादानियों  पे हमको गुरूर बहुत है
 हकीकते जिस्त से ओझल ख़्वाब रखते हैं

नजर से हमारी मदहोशी नहीं जाती
उन आँखों में जाने क्या शराब रखते हैं

हमसे मिलो कभी ...तो फासला रखना
नजरो में एहसास ए तलाब रखते हैं ..

महसूस करके तो देखो कर्ब यहाँ 'वंदु'
दिल में पीर का  जैसे सैलाब रखते हैं

कलमकारों का ये हूनर गजब का है 


खुद चिलमन में रहकर भी वो 
दिल के हर जज्बात को बेनकाब रखते हैं..

7 comments:

  1. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  2. ek ek sher par Lillah .....aajkal to kamaal kar rahi hai aap...subhan allah:-)

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  3. waah, kya baat hai....

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  4. वो आ जाते है ख़्वाब में तो दिनभर मदहोशी नहीं जाती
    खुदा जाने ....उन आँखों में..... कैसी शराब रखते हैं
    bahut khub................

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  5. कलमकारों को ये हूनर गजब का बख्शा है रब ने
    के खुद चिलमन में रहके दिल के हर जज्बात को बेनकाब रखते हैं..
    kya baat hai....
    maza aa gaya.....
    http://i555.blogspot.com/ mein is baar तुम मुझे मिलीं....
    jaroor dekhein...
    tippani ka intzaar rahega.

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  6. कलमकारों को ये हूनर गजब का बख्शा है रब ने
    के खुद चिलमन में रहके दिल के हर जज्बात को बेनकाब रखते हैं..

    too good...keep going...:)

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  7. mere blog par pehli baar english poem...jaroor dekhein aur apni pratikriya dein...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...