Wednesday, March 31, 2010

ek chhoti si gajal ...







वो छोड़ गया मुझको ..अजब लहरों के बवंडर में
के ना तो डूब ही पाए, ...उभरना हो गया मुश्किल..

गजब का नूर था उसकी उन शतिर निगाहों में
के नादाँ था ये दिल मेरा ..संभलना हो गया मुश्किल..

वो नजरो से कर बैठा कुछ सवालात मुश्क्किल से
ना हम कुछ कह ही पाए, ...मुकरना हो गया मुश्किल..

आईना हँसता है जाने किस जुदा अंदाज से मुझपर
क्या बताये आजकल क्यूं ..संवरना हो गया मुश्किल ..


मेरा मुजरिम है उसको   खबर देना मेरे दोस्तों 
दिया है जख्म एक ऐसा के भरना हो गया मुश्किल.. 


ये बेपत्वार सी जिन्दगी हमें मंजूर कब से थी.
मगर अपना लिया इसको तो मरना हो गया मुश्किल ...

7 comments:

  1. ये बेपत्वार सी जिन्दगी हमें मंजूर कब से थी.
    मगर अपना लिया इसको तो मरना हो गया मुश्किल ...

    heyy read my new poem
    http://fervent-thoughts.blogspot.com

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  2. oye sadke jawa soniyo....tussi to chaa gaye ji...badaa changa andaaz dikhaya ji...


    वो नजरो से कर बैठा कुछ सवालात मुश्क्किल से
    ना हम कुछ कह ही पाए, ...मुकरना हो गया मुश्किल.. aai tashan qayamat na le aaye kahin :-)

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  3. Waaaaah waaaaah waaaaaaah.....ab kya batayein mohtarma kya dilkash andaz ke saath aapnne likha hai. Chacha ki boodhi hadiyan tak char-mara gayin.
    Itna khoobsurat likha hai ki waaah waaah karne k liye bina peek daan ke hi bhateeje ke girebaan mein hi paan thook diya humne. :D

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  4. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  5. bahut bahut shukriya aap sabhi ka ...yahan tak aane k liye or sarahne ke liye:)

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  6. वन्दना जी आपका ईमेल पता चाहिए एक जरूरी मेल भेजनी है

    venuskesari@gmail.com पर एक मेल कर दें

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  7. This comment has been removed by a blog administrator.

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...