Thursday, April 8, 2010


मन और आँखों के दरमियाँ
ये सोंच का गहरा सागर..
जहां एक छोर से रोज
ख्वाइशो का सूरज उगता भी है
और दुसरे छोर पर डूबता भी .

.कई आशाओं के दीप जलाकर
अर्पित करती हूँ हर नयी सुबह...
कुछ तैर जाते है कुछ डूबते भी
.
कुछ ख़्वाब उठते है मन के
साहिल से बनके सतरंगी बादल .
.बरसते हैं जिन्दगी के आँगन में ..
कुछ मायूशियो कि सांझ में
उम्मीद के डूबते सूरज कि
तपिश में जलते भी है ...

संघर्ष कि धूप से
कुछ सपने
मुस्कुराते है सूरजमुखी से ..
कुछ नन्हे ख़्वाब तपिश में
अक्सर झुलसते भी है

जिस्म एक कतरा बूँद कोई ..
रूह झाल ए समंदर लगती है
एहसासों कि कश्ती जब
मुझमे डूबती भी है
उबरती भी

रोज रिस जाते है ये अनमोल
अश्क आँखों के कलश से
एक कठोर सा हिम रोज
जमता भी है
पिघलता भी

.
चीखती है ..
खामोशिया तड़पकर
एक शोर सा
गूंजता है मुझमे

मेरा वजूद
मुझे इजाजत नहीं देता मगर
उसके तसव्वुर से हम
मिटते भी है..
सँवरते भी.


13 comments:

  1. संघर्ष कि धूप से
    कुछ सपने
    मुस्कुराते है सूरजमुखी से ..
    कुछ नन्हे ख़्वाब तपिश में
    अक्सर झुलसते भी है..


    मेरा वजूद
    मुझे इजाजत नहीं देता मगर
    उसके तसव्वुर से हम
    मिटते भी है..
    सँवरते भी.

    superb lines...gud wrk...

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  2. Wow...superb yaar....Gazab ka likha hai...मेरा वजूद
    मुझे इजाजत नहीं देता मगर
    उसके तसव्वुर से हम
    मिटते भी है..
    सँवरते भी.

    luv you

    Priya

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  3. thanks Saumya...thx for coming :)

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  4. thaanks a lottt priya ...lov u toooo dear :)

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  5. the poem is just awesome.....
    keep doing the good work...
    i really liked it...

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  6. vandna ....poori nazm achhi hai ....par sabse khaas lines..
    मन और आँखों के दरमियाँ
    ये सोंच का गहरा सागर..
    जहां एक छोर से रोज
    ख्वाइशो का सूरज उगता भी है
    और दुसरे छोर पर डूबता भी .

    ye hain ..ye khas isliye lagi ki ...inhe tumhari kavita se nikal kar padhna bhi ise adhura nahi hone deta..poori lagti hai ye kavita..khub bhalo...

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  7. रोज रिस जाते है ये अनमोल
    अश्क आँखों के कलश से
    एक कठोर सा हिम रोज
    जमता भी है
    पिघलता भी

    बहुत अच्छा लिखती हो!

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  8. thanks a lottttt swapnil..tumhe yahan dekhkar acchaa laga ..thnks for coming :)

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  9. pallavi ji ..bahut bahut shukriya:)

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  10. Mindblowing likha hai. maza aa gaya padhkar by god ki kasam....hehehehe :)

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  11. सुन्दर रचना अनेक भाव लिये हुए

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  12. बहुत सुन्दर रचना है ! बधाई!

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  13. mere blog par is baar..
    वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
    jaroor aayein...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...