Saturday, March 27, 2010



गुनगुनाती है जिसे हर लम्हा ख़ामोशी मेरी ..
वो ऐसा ....बेजुबां .....साज दे गया

जिधर नजर उठाई ..फ़साने बन गए
मेरे मूक एहसासों को अल्फाज दे गया

शोर ..मचाने लगी हैं ...धड़कने मेरी ,
वो दिल का जाने इन्हें कोंन सा राज दे गया..

आईने को... भला ..ये कौन समझाये,
कौन आँखों को हया के नए अंदाज दे गया...

मुझे ...डराने लगा है हर घडी खोफ कोई ,
वो जिन्दगी को कैसे ये आगाज दे गया..

** सहम जाती है ..रूह मेरी... ये सोचकर,
वो क्यूं एक झूठा ख्याल ए परवाज दे गया..

मुझे उस राह जाना नहीं ,उसे इस डगर आना नहीं,
फिर क्यूं .....वो बेवजह .... मुझे आवाज दे गया.... .


vandana

2 comments:

  1. मुझे उस राह जाना नहीं ,उसे इस डगर आना नहीं,
    फिर क्यूं .....वो बेवजह .... मुझे आवाज दे गया....
    ...बहुत खूब, प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!!

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  2. आईने को... भला ..ये कौन समझाये,
    कौन आँखों को हया के नए अंदाज दे गया...

    मुझे उस राह जाना नहीं ,उसे इस डगर आना नहीं,
    फिर क्यूं .....वो बेवजह .... मुझे आवाज दे गया.... .


    u really write well....full of emotions...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...