इतनी संजीदगी से चोट खाता किनारा नहीं देखा जाता
जाने क्यूं हमसे तड़पती लहरों का नजारा नहीं देखा जाता ..
जुर्म हवाओं का नहीं ....मोसम ए पतझड़ का है
मगर झरझर होता साख ए गुल बेचारा नहीं देखा जाता
एक रोज लाये थे तुम शहद सी मिठास जिन्दगी में मेरी
मगर यूँ अब बदलता मिजाज तुम्हारा नहीं देखा जाता ...
जी तो करता है के कोई दुआ आज मैं भी मांग लूं
मगर मुझसे टूटकर गिरता वो तारा नहीं देखा जाता ..
यकीं मानो खुद को इतना मजबूर कभी नहीं पाया हमने
ये क्या हुआ है के हाल हमसे हमारा नहीं देखा जाता..
कोई बताये इस दिल को मैं किन सलाखों से कैद करूँ
रुसवा होती है सख्सियत मेरी ..मुझसे यह यूँ आवारा नहीं देखा जाता....
यकीं मानो खुद को इतना मजबूर कभी नहीं पाया हमने
ReplyDeleteये क्या हुआ है के हाल हमसे हमारा नहीं देखा जाता..
wah.
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
ReplyDelete... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteजी तो करता है के कोई दुआ आज मैं भी मांग लूं
ReplyDeleteमगर मुझसे टूटकर गिरता वो तारा नहीं देखा जाता .....
gr8...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletebhaut pyaari gajal hai aapki
ReplyDeleteएक शेर अर्ज़ करना चाहूँगा ......
ReplyDeleteक्या खूब लिखती हो
बड़ा सुन्दर लिखती हो
फिर से लिखो
लिखती रहो
..............................
बुरा मत मानियेगा वंदना जी
बस मन में आया और हमने लिख दिया
हमारे ब्लॉग पर भी दर्शन दे .........
bahut sundar hai,tarif karne ke liye shabd b nahi hai...Ravi shukla nagpur
ReplyDeletebahut sundar hai,tarif karne ke liye bhi shabd nahi hai..Ravi shukla nagpur
ReplyDeletebahut achhi lagi gajal....
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