Thursday, March 18, 2010

सांझ



एक ठिठुरती सांझ को


सागर के तट पर तपते देखा है ..


समंदर कि रूह को ..तपिश से..


पिघलते देखा है,


मंजर आसमां का


धुंआ धुंआ सा है ...


मैंने एक चिराग कि लो में


बादलो को जलते देखा है !!

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...