इस कविता प्रेम ने हमें ख़ुद से बतियाना सिखा दिया
दिल के एहसासों को साज बनाना सिखा दिया
एक दर्द छुपाने की कोशिस ने मुस्कुराना सिखा दिया
अपनी कैद फिदरत ने पिंजर (खुद से )से दिल लगाना सिखा दिया
अपनों की रुसवाई ने गैरों से दिल लगाना सिखा दिया
किसी के एहसासों ने तन्हाई में महफिल सजाना सिखा दिया
प्रीत की इस रीत ने मुझे मीरा ,दिल को इकतारा बना दिया
मेरी आँखों को किताब ,और अश्को को अफसाना बना दिया
ऐ कलम तू सहेली है मेरी ..कुछ तो तेरे मेरे बीच ही रहा होता
तूने मेरी आँहों को गैरों के लबो का तराना बना दिया
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

-
खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
-
बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
-
बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
somewhat inconsistent,but overall its good..
ReplyDeleteप्रीत की इस रीत ने मुझे मीरा ,दिल को इकतारा बना दिया
मेरी आँखों को किताब ,और अश्को को अफसाना बना दिया
real good stuff...
"koshish" ki spelling me mistake hai...
hamara dil to tumhari is line ne jeet liya "ऐ कलम तू सहेली है मेरी ..कुछ तो तेरे मेरे बीच ही रहा होता
ReplyDeleteतूने मेरी आँहों को गैरों के लबो का तराना बना दिया"
Bilkul sachcha aur sunder!