Saturday, June 13, 2009

कुछ बस यूँ ही

दिल से बह रही थी गजल की उमंगें
मगर मैं समेट नही पा रही थी,

सपनो की झाकिया इन आंखों पर छा रही थी
जैसे जिन्दगी मुझसे छुप छुप कर मुस्कुरा रही थी,

उठ रही थी लहरे दिल में मगर
मैं
एक के बाद एक ख़ुद में दफ़न किए जा रही थी
एक अजीब बेबसी ....घुटन का एहसास दिला रही थी

वो आंसू भी नही थे ..वो दर्द भी नही था
तो क्या आँखों के रास्ते मैं सपने बहा रही थी,

मत बहा इन सपनो को मत इनको यूँ दफ़न कर
मेरी आरजू मुझसे कहे जा रही थी,

खड़ी थी जैसे दोराहे पर ....एक तरफ़ बेमुकाम राह
और दूसरी तरफ़ मंजिल बुला रही थी,

दिल की तड़प को दबाते हुए
मैं
बेबसी के घूँट पिए जा रही थी,
कल्पनाओ के पर काट कर
उनको
सच्चाईयों से वाकिफ किए जा रही थी,

जिन्दगी को दिखाया जब आईना तो पाया
मैं निर्जीव सी जिन्दगी जिए जा रही थी,

मेरी आरजू ...मेरी चाहते ..मेरी खुआइशे ..मेरी तमन्नाये
मुझको अपना कातिल कहे जा रही थी **

6 comments:

  1. wah Vandana bahut khoob

    " वो आंसू भी नही थे वो दर्द भी नही था
    तो क्या आँखों के रास्ते मैं सपने बहा रही थी
    मत बहा इन सपनो को मत इनको यूँ दफ़न कर
    मेरी आरजू मुझसे कहे जा रही थी"

    bahut depth hain inme

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  2. the ideas are great...expressions,choice of words are also very good...potentially a great composition but it seems to have gone wrong...

    aap khud dekhiye,kisi bhi cheez me ekroopta nahi hai...be it rhyming scheme,be it the length of different paragraphs...even the length of lines...kabhi bahut chhota,kuch bahut badaa...isse overall look poem ka dissapointing hai...

    I still maintain most of the things are really brilliant,bas unko frame aur proper way me kijiye....

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  3. मेरी आरजू ...मेरी चाहते ..मेरी खुआइशे ..मेरी तमन्नाये
    मुझको अपना कातिल कहे जा रही थी

    सुन्दर कविता
    वीनस केसरी

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  4. दिल की तड़प को दबाते हुए मैं बेबसी के घूँट पिए जा रही थी
    कल्पनाओ के पर काट कर उनको सच्चाईयों से वाकिफ किए जा रही थी

    Truth of life.

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  5. वो आंसू भी नही थे ..वो दर्द भी नही था
    तो क्या आँखों के रास्ते मैं सपने बहा रही थी,

    Uffff.....Bahut dard chupa hai aapki nazm mein Vandana.
    God bless u.

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  6. bahut saare shabdone ka bakhobi istemal kiya hai aapne is kavit mein.
    Behad hi bhavpurn kvita.

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...