Saturday, May 23, 2009

तेरे दम से राज कोई ......राज नही रहता ,मुझे नही मालूम लेखनी तू चीज क्या है

बहाए हैं इन आँखों से अश्क इतने
की अपनी रूह को मैंने तर कर लिया है ....

जो खुआब आसमां में पंछी बनकर उड़ते थे ,
उनको अब खुद में कैद कर लिया है ....

उसके अहसासों ने मुझको इतना आजमाया है ,
की उसकी यादो से भी वास्ता अब कम कर लिया है ....

दर्द जब से जुदाई का अपना लिया है मैंने ,
अब कोई भी दर्द मुझे गवारा नहीं लगता ........

*अपनी मोहब्बत को जब से दिल में दफ़न कर दिया है ,
तब से कोई भी दरिया मुझे खुद से गहरा नहीं लगता ............

**सोचती हूँ, तराने तो अपने भी मशहूर हो गए होते ,
गर जज्बातों पर दस्तूरों का पेहरा नहीं लगता.....

9 comments:

  1. **सोचती हूँ, तराने तो अपने भी मशहूर हो गए होते ,
    गर जज्बातों पर दस्तूरों का पेहरा नहीं लगता.....

    badhia likha hai, dard se labrez ehsason ka guldasta.

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  2. अपनी मोहब्बत को जब से दिल में दफ़न कर दिया है ,
    तब से कोई भी दरिया मुझे खुद से गहरा नहीं लगता ............
    kya behatreen shair hai !! wah

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  3. achhi rachna hai aapki.Abhi ek hi kavita padhi hai.aage aur bhi padhne ki koshish karoonga.
    Bahut achchh likha hai.
    Navnit Nirav

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  4. shukrya aap sab ka sahrane ke liye or apna keemti vakt is blog par dene k liye

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  5. बहुत सुन्दर रचना है अच्छे भाव और सुन्दर अभिव्यक्ति है
    बस दूसरी लाइन में रूह शब्द का दोहराव कुछ अटपटा लगा

    की अपनी रूह-रूह को मैंने तर कर लिया है ....

    वीनस केसरी

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  6. dhanyavad kesri ji is baat par gor karne k liye
    aasha hai aage bhi aap ese hi margdarshan karte rahenge

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  7. **सोचती हूँ, तराने तो अपने भी मशहूर हो गए होते ,
    गर जज्बातों पर दस्तूरों का पेहरा नहीं लगता.....

    hhhmmmm.....ye nazm bhi direct dil se aayi hai. Bahut hi bahdiya nazm hui hai Vandana.

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