ऐ जिन्दगी अब और कुछ न मांग हमसे ,
तू सोच के तूने दिया क्या है .....
तेरी उधारी का हम हिसाब रख न पाए
नही मालूम अब तलक हमने जिया क्या है .....
जी रहे है ऐसे , जैसे तेरा उधर चुका रहे है
नही मालूम मूल में तुझसे लिया क्या है ...........
तेरे मैकदे में गम और खुसी की पहचान न कर सके
नही मालूम वक्त के इन पैमानों से हमने पिया क्या है .....
ख़ुद की गुमराहियों में कुछ तलाश जारी है
नही मालूम हमसे खुआ क्या है .............
कुछ जल जल के बुझता रहा सीने में मेरे
नही मालूम था मुझको ये धुआं क्या है ..............
दिल में उमड़ती लहरों से कुछ टकराता रहा.... किनारे का पत्थर बनकर
ये अल्हड सी नादान लहरें
इन्हे फ़िर भी नही मालूम चोट क्या है .............
ये दिल के जज्बात भी कितने बाँवरे होते है
मेरी आँखों के आईने से पूछते है की ओट क्या है ..............
न ख़ुद के रहे हम न किसी के हो पाए
नही मालूम हमें ये हुआ क्या है ........
**ज़माने के लिए संजीदा और बेकसूर हूँ मैं
जो ख़ुद से कर रहे है नही मालूम ..वो दगा क्या है .........
ये पागल दिल मुझसे छुप छुप कर जो किए जा रहा है
नही मालूम वो गुनाह क्या है ................
जो टूटते तारो से माँगा वो कभी मिला नही हमको
जो बिन मांगे मिल रही है
नही मालूम ये दुआ क्या है ........
ऐ मोला ......मेरी ख़ुद की तलाश का बस अंत इतना हो
तारीफ तो कुछ नही अपनी ,मालूम तो चले खोट क्या है .......
ऐ रब्बा.... इस दुनिया में इंसानियत तो बहुत महंगी मिलती है
इस महगाई के दोर में ,मुझे मालूम तो चले
दुनिया में इंसानों का मोल क्या है ........
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
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वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
कुछ जल जल के बुझता रहा सीने में मेरे
ReplyDeleteनही मालूम था मुझको ये धुआं क्या है ..............
sahi me nahi malum ke hua kya hai....akhir es dard ki dwa kya hai.....sunder post...
achchhi kavita hai.......is par ek panti jo maine kahin padhi thi....
ReplyDeleteJindagi kuchh is tarah khamoshiyon se bhar gayin.
Dhoondhta firta hoon dil ka chain par pata nahin.
Navnit Nirav
acchi rachna hai.. aap accha likhti hai....ye kavita bahut acchi hai..
ReplyDeleteitni acchi rachna ke liye badhai ..............
meri nayi poem padhiyenga ...
http://poemsofvijay.blogspot.com
Regards,
Vijay
ये दिल के जज्बात भी कितने बाँवरे होते है
ReplyDeleteमेरी आँखों के आईने से पूछते है की ओट क्या है ..............
Waaaaah....poori nazm bahut hi khoobsurat hai. aur oopar likhi panktiyon ke liye to hats offff...
Bahut hi gehri soch....