एक पंछी नादान हूँ मैं ,
कभी कैद हूँ मैं , कभी आजाद हूँ मैं
कभी उदास हूँ , कभी हर्सौल्लास हूँ
कभी तन्हाईयो में भी अक्सर महफिले सजाता हूँ
कभी महफिलों में भी तनहा रह जाता हूँ
कभी बालक सा नादान हूँ ,कभी कवियों सा महान हूँ
कभी अपनों से अनजान हूँ कभी गैरों पे मेहरबान हूँ
कभी साँसों की सरगम हूँ ,कभी लहरों का संगम हूँ
कभी हर बंधन की डोर हूँ ,कभी टूटी हुई गठजोड़ हूँ
" झूले पर बैठी किसी सहजादी का लहराता हुआ आँचल हूँ मैं
और,जो अश्को में बह गया है किसी की आँखों का वो काजल हूँ मैं
किसी के घावो का मरहम हूँ मैं
कभी जख्मो पर किसी के छिड़का गया नमक हूँ मैं
किसी के दिल का टूटा हुआ अरमान हूँ
किसी के अटूट विश्वास का अभिमान हूँ
कभी आईने की ओट हूँ ,कभी शबनम की चोट हूँ
"कभी सावन की नम हवा हूँ
कभी बनकर जेष्ठ की लू मैं बहा हूँ
कभी सागर से ज्यादा गहरा हूँ
कभी एक बूँद में सिमट कर ठहरा हूँ
कभी दुनिया का दस्तूर हूँ ,
कभी आशिक कोई मजबूर हूँ
"फूलो की आड़ में जो काँटों से जा टकराया
वो भंवरा एक नादान हूँ मैं
कभी कैद हूँ मैं , कभी आजाद हूँ मैं
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Monday, May 4, 2009
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tum jo bhi ho lajawab ho,
ReplyDeleteaur hamare liye bahut khas ho:-)