जब वैराग्य को पाया तो दुनिया छूटी ,
दुनिया छूटीं तो गुमनाम हुआ .
जो वैराग्य को छोडा -तो खुद से बिछडा
खुद से बिछडा तो विरह पाई ,
विरह मिली तो बदनाम हुआ *
न विरह छूटी , न वैराग्य गया
मैं दोनों का दास भया
मिट गयी मन की रसना सारी,
अब तो कवि मेरा नाम भया .......
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

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खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
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बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
kaviyo ke upar likhi gayi is tarah ki kavitaayein bahut achhi lagti hai
ReplyDeleteakhiri pankti mein kavi ki spelling galat ho gayi hai wo sudhar le
good one! aap likhti rahiye hum padhte rahengay
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