मैंने अपने आप से वादा किया हुआ है कि मैं इस व्यस्तता मे ज्यादा न लिख पाऊं मगर हर महीने एक रचना जरूर ब्लॉग पर लिखती रहूँगी ! आज ब्लॉग पर आकर देखा तो ध्यान आया कि जुलाई कि आखिरी तारिख है और इस महीने के नाम मैंने कुछ लिखा ही नही. आज पहली बार कुछ यूँ ही लिखने के लिए लिखने कि कोशिश कर रही हूँ देखते हैं कितनी सफल होती है .....अच्छी बात है कि बहार बारिश है इसलिए मूड को बन्ने मे वक्त नही लगेगा ..दो चार बूंदे हथेली पर उतरते देख खुद पे खुद बन जायेगा :)
अजीब सा रिश्ता है !
इन परिंदों के भीगे पंखो
और मेरी नम हथेली का
अजीब सा रिश्ता है !
इन भीगी भीगी साखों
और मेरी भीगी पलकों का
अजीब सा रिश्ता है !
सर सर बहते पानी का
और तसव्वुर कि रवानी का
अजीब सा रिश्ता है !
इस सावन की बरसात का
और तुमसे जुडी हर बात का
अजीब सा रिश्ता है !
वंदना
इस सावन की बरसात का
और तुमसे जुडी हर बात का
अजीब सा रिश्ता है !
वंदना
लिखने के लिए लिखते हुए भी कितना सहज और सुन्दर लिख गयीं आप!
ReplyDeleteवाह!
रिश्ता बना रहे भले ही अजीब ही क्यों न हो .... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बढिया..वंदना जी..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDelete:-)