Wednesday, June 26, 2013

त्रिवेणी




बागों के कोलाहल से सन्नाटे पुकारते हैं 
मिलजुल सब संगी पखेरू शफक बुहारते हैं 

चले भी आओ कि अब तो सांझ होती है !

- वंदना

7 comments:

  1. आपकी यह रचना कल दिनांक 27.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.com पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

    ReplyDelete
  2. आपकी यह रचना कल दिनांक 28.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.com पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब ... मज़ा आया पढ़ के ...

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  5. वाह: बहुत सुन्दर..

    ReplyDelete
  6. I guess it was 4 years back when i first read you...quite amazed at how amazing you have become... :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. hehe .Thanks a lot Sajal ji..:)

      purane sangiyo se jude rahne ka yhi fayda hai k hame jameen yaad rahti hai :) abhaar

      Delete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...