Friday, June 29, 2012

त्रिवेणी



ख़ामोशी कभी बन जाते हैं 
कभी सन्नाटों में चिल्लाते हैं 

अजीब हैं लफ़्ज़ों के रिश्ते !!


- वंदना 

11 comments:

  1. वाह: बहुत खूब कहा...ल़फ्जों के रिश्ते भी अजी़ब होते हैं..सुन्दर अभिव्यक्ति...वंदना जी..

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (01-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. बहुत सुन्दर......

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  4. बढ़िया भाव |
    आभार ||

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  5. क्या कहने
    बहुत सुंदर

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  6. सन्नाटों की ख़ामोशी.

    बहुत खूब.

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  7. सुंदर त्रिवेणी

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  8. khubsurat triveni vandana ji

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...