Wednesday, November 23, 2011

सलाम ..




जब दिन भर उडती 
पतंगों कि ड़ोर 
वापस खींच लेने का 
वक्त होने लगे  .....

जब परिंदे अपनी अपनी 
दिनचरिया समाप्त कर 
शाम के आने का 
गाकर , नाचकर झूमकर
 स्वागत करने के लिए 
पेड़ों पर एकत्र हुए हों .....

जब हवा किसी फ़कीर के
राग पर मचलती हुई 
जरा बलखा कर चले ....

जब सूरज थका हारा 
समंदर से दो बात करने को 
शफक पर कुछ पल ठहर कर 
सुनहरी सांझ को देखे ..

जब लहरें  सीने में उमंग लिए 
झूम उठे ...जब बादल 
तपिश से जल कर 
तितर बितर हो जाए ...

जब लिखी हों शफक ने 
स्वर्णिम तहरीरें 
आसमाँ के सीने पर ...

जब सूने घर और 
आँगन कि तन्हाई 
खिड़की पर सिर टिकाकर 
बैठे ...और हवाओं से 
बतियाती हुई खिडकियां 
पसरते अँधेरे को 
भीतर उतरता देख 
कपाट  बंद करने लगे ...
.
जब साँसे एक खुशनुमा मौसम 
और इतराती सांझ को देखकर 
अंदर ही अंदर घुट जाए ...

जब बढती हुई शीतल सी धुंध 
आँखों में चुभता... धुंआ सा लगे ..

जब बादल  कि कोई 
टुकड़ी ...भटकती हुई 
अचानक  चली आये 
और छत के  छज्जे से 
नन्ही नन्ही बूंदों में 
अपने कदम जमीं पर रखे...

जब इन सूनी सी 
आँखों से कोई मोती ..
तसव्वुर ,अहसास ,यादें ..
तमाम रंग समेटे 
पलकों कि कौर से तेरी  
नर्म हथेलियों पर उतरे 
..तो तुम समझ  जाओगी न 
इश्क ने बन्दगी को सलाम  भेजा है ?






- वंदना 

9 comments:

  1. वाह …………बहुत खूब्।

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  2. इश्क का सलाम वो भी ऐसे में ... क्या बात है ... मज़ा आ गया पढ़ के ...

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  3. वाह!! सुन्दर बिम्बों को लेकर रची गयी सुगढ़ रचना
    सादर बधाई...

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  4. वाह! बहुत ही सुन्दर भावो का समायोजन......

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  5. इश्क ने बंदगी के नाम सलाम भेजा है!! : ): ):)

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...