पलके झपकूं तो कोई ख़्वाब आये शायद
आज महताब जमीं पे उतर जाये शायद !
आँख से बह गया है काज़ल ये तमाम ,
आईना फिर से आज मुस्कुराये शायद !
सिसकियाँ खामोश अब होने लगी हैं,
दिल ए पागल अब कुछ गुनगुनाये शायद !
जाने वाले को कहो जरा पलटे तो सही,
न तड़पकर कोई आवाज़ लगाये शायद !
जीने कि तलब पल पल मर के जान ली ,
अब कद्र ए जिंदगी भी समझ आये शायद !
वन्दना
आँख से बह गया है काजल तमाम
ReplyDeleteआईना फिर से आज मुस्कुराए शायद
वाह!
उम्दा ग़ज़ल...
सादर बधाई...
बहुत सुन्दर गजल.....
ReplyDelete:) :) :)
ReplyDeleteखुबसूरत ग़ज़ल....
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