Wednesday, June 22, 2011

बरकरार ये सिलसिला रखना !



तुमसे हो सके तो बरकरार ये सिलसिला रखना 
दिल के किसी कोने में हमसे कोई गिला रखना 

हमने ये मान लिया मोहब्बत एक गुनाह  है
इन दूरियों के दरमियाँ तुम मेरी सजा रखना 

तुमसे ताल्लुक कोई न था , ना है   न रहेगा 
भरम रफाकत का मगर दिल में सदा रखना 

तुझे जाना नही पहचाना नही मगर माना बहुत 
दिल कि इसी नादानी का नाम तुम वफ़ा रखना 

किसी पल बैठकर तन्हा कभी मुस्कुराओगे 
 उन सब पुरानी यादों से तुम वास्ता रखना !




'वन्दना '

5 comments:

  1. तुझे जाना नही पहचाना नही मगर माना बहुत
    दिल कि इसी नादानी का नाम तुम वफ़ा रखना
    हृदयस्पर्शी पंक्तियां। बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  2. बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने!
    हर शेर सीधे दिल में उतर जाता है!

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  3. सुन्दर गजल ...दिल से निकली ....

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...