Thursday, June 9, 2011

ग़ज़ल ....





जैसे किस्मत का अपनी सितारा देख लेते हैं 
 टूटकर गिरता हुआ  जब तारा देख लेते हैं 

एक सैलाब आँखों तक आके ठहर जाता है 
बहुत खामोश जब कोई किनारा देख लेते हैं 

दुनिया में किसी से कोई शिकवा नहीं रहता 
हर रिश्ते का बिगड़ता जब नजारा देख लेते हैं

जी तड़प उठता है ताउम्र माँ के सजदे को  
जब कभी कोई बच्चा बेसहारा देख लेते हैं  

जी चाहता है कि खुद से कहीं भाग चलें 
गगन में जब कोई पंछी आवारा देख लेते हैं 

अपना ही ठिकाना कहीं नजर नही आता 
बाकी तेरी आँखों में जंगल सारा देख लेते हैं 

वंदना 




8 comments:

  1. AnonymousJune 09, 2011

    kya baat hai vandna ji
    jannat hi loot li aapne

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  2. 'हर शै कहती है टूट जाओ ,क्या करे टूटना नहीं आता '..आज की सुबह आपकी रचानों से सुंदर हो गयी---
    जैसे किश्मत का जब सितारा देख लेते हैं ------/

    शानदार ग़ज़ल--को पुनः सत्कार /

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  3. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल| धन्यवाद|

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  4. बस एक शब्द - "वाह" - बहुत अच्छा लगा वन्दना जी आपको पढ़कर - सचमुच खुशी हुई। शुभकामनाएं।
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  5. खूबसूरत ... Lajawaab gazal ....

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  6. बहुत ही सुन्दर गजल…

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  7. बहुत सुन्दर रचना, बधाई वंदना जी

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