कुछ ख्वाबो के
पाँव नहीं होते ..
सिर्फ 'पर' होते हैं...
ये चंद ख़्वाब
वही बे पाँव वाले मुसाफिर हैं..
जब दिल के नगर से जायेंगे
तो कोई पगचिन्ह बाकी न होंगे
बस तुम चुन लेना
वो बिखरे हुए पंख
और रख लेना
यादों कि किताब के
किसी खूबसूरत से पन्ने में
जिंदगी में जब भी कोई
ऐसा पल आये जब ,
मुस्कुराने कि या उदास
होने कि वजह ना मिले..
तब खोलना जहन के
ताबूत में बंद ये किताब
महसूस करना
इन ख्वाबो कि
उस परवाज़ को
जिसे जिंदगी कि
इन हवाओ में ही कहीं
खोया हुआ पाओगी !!
वन्दना
JI BAHUT AACHI RACHNA
ReplyDeletePLS FONTS SIZE THODA SA BADA KAR LE AASHNI HOGI
PADHNE ME
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बेहतरीन एवं उम्दा!!
ReplyDeletepriya vandana singh ji
ReplyDeletesadar vandan ,
pahali bar aapko padha ,bahut achha laga .sundar abhivyakti ,man ke taron ko jodati ,bahut hi samvedanshil lagi .hardik shubh-kamnayen .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
ReplyDeleteमहाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|
बहुत ही सुन्दर... खोल लिया जहन की किताब और डूब गया उसी मे....
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteविलियम wordsworth की कविता daffodils याद हो आयी.
सलाम.
For oft, when on my couch I lie
In vacant or in pensive mood,
They flash upon that inward eye
Which is the bliss of solitude;
And then my heart with pleasure fills,
And dances with the daffodils.
By William Wordsworth (1770-1850).