Sunday, February 27, 2011

हिंद-युग्म पर एक ग़ज़ल


Friday, February 18, 2011


छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये


पुरस्कृत रचना: गज़ल



लबो पे  हँसी, जुबाँ पर  ताले रखिये,
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये


दुनिया में  रिश्तों का  सच  जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये


बेकाबू  न हो जाये ये अंतर्मन  का  शोर ,
खुद को यूँ भी न ख़ामोशी के हवाले रखिये


होती है मोहब्बत भी तलब ए मुश्कबू सी ,
इस सफर ए तीरगी में नज़र के उजाले रखिये
मौसम आता होगा एक नयी तहरीर लिए,
समेटकर पतझर कि अब ये रिसाले रखिये


कभी समझो शहर के परिंदों की उदासी
घर के एक छीके में कुछ निवाले रखिये


तुमने सीखा ही नहीं जीने का अदब शायद,
साथ अपने  वो बुजुर्गो कि  मिसालें रखिये


(मुश्कबू= कस्तूरी की गंध
रिसाले = पत्रिका)
__________________________


वन्दना सिंह 

4 comments:

  1. कितनी सही बात कही है आपने...प्रेम में कुछ पाने के लिए भ्रम को पालना ही पड़ता है......बेहतरीन रचना....।

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  2. wow...loved each and every couplet...bauhat acche..congratulations dear :)

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  3. bahut khoob, puruskaar banta hai iska.

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  4. ग़ज़ल का हर शेर बड़ी खूबसूरती से तराशा हुआ ....जो पढ़े वो बिना गुनगुनाये न रह सके ...जो न पढ़े वो बिना पछताए न रह सके ..........बस इतनी सी मेहरबानी और कीजिये कि इन माइक्रोस्कोपिक अक्षरों को थोड़ा सा और बड़ा कर दीजिये ......ताकि हम ज़रा जोर-जोर से गा सकें .........और पड़ोसियों को आपकी ग़ज़ल से रू-ब-रू करा सकें.

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...