गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Friday, February 25, 2011
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
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बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
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लाख चाह कर भी पुकारा जाता नही है वो नाम अब लबों पर आता नही है इसे खुदगर्जी कहें या बेबसी का नाम दें चाहते हैं पर...

बिल्कुल जी अपने हिस्से की जमीन और आसमान सभी को मिलता है।
ReplyDeleteman ko chhoo gayi ,kuchh khas hai baat .badhiya
ReplyDeleteवाह क्या बात है ..बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब! दिल को छू गयी पंक्तियाँ...
ReplyDeleteLife, come to me slow!
ReplyDeleteछोटे से तीन वाक्यों ने बहुत सुंदर विचार का पूरा व्याख्यान कर डाला!
why not :D
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