वो एक खलिश ..
ये चुभते हुए एहसास
कितनी आसानी से आज
मूरत हो जाना चाहतें हैं
जैसे सारे के सारे अल्फाज
मेरे ख्यालो को एक
खूबसूरत शक्ल देना चाहते हों
टूटे हुए ख्वाबों के
झरोखों से चलती हवाएं
दिल के जले हुए
अरमानों कि राख को
कहीं उड़ा देना चाहती हैं जैसे,!
सारे जज्बात एक नज्म कि तरह
ठहर जाना चाहते हैं
कागज़ कि तकदीर बनकर !
जाने ये क्या है आज जो
मेरे भीतर के सन्नाटो को
चीरकर बेहद शोर करता हुआ
मुझे बहने पर मजबूर कर रहा है
एक लम्बी ख़ामोशी सब कुछ बयाँ
करने आतुर सी क्यूं है ??
मैं एक के बाद एक अपनी
उछटि नींद ..टूटे ख़्वाब
और बिखरे एहसास कि किरचों कि किश्ते
चुन चुन कर कागज़ पर सहेज रहीं हूँ
डर लग रहा है
इन दिशा हीन हवाओं से
इस गुजारते हुए तूफ़ान से
जिसके जाने बाद एक
लम्बा सन्नाटा पसार जायेगा
बहुत दूर तक खामोशियाँ
बेजुबां होकर अकेले
भीड़ भरे रास्तो से गुजरेंगी. .
आज मैं अंतर्मन में उठते
इस अजीब से शोर को
कान दबाये सुन रही हूँ
मगर कुछ पल बाद जिंदगी
कि हवाएं फिर से
मध्दम हो जाएँगी
तब सिर्फ सुनाई देगी
अकेले सफ़र में कदमो कि आहटे
इज्तराब में दौडती धडकनों को शोर
जो इस शोर से कहीं ज्यादा
भयानक होता है मेरे लिए
बिखेर कर रख देता है जब
मेरे आत्मविश्वास को .!
"किसी माटी के खिलौने को
भिगो कर मिटाना
कितना आसान होता है न ?"
- वन्दना
अपने परिवेश में मौजूद अंतर्विरोधों के झंझावातों से जूझते संवेदनशील मन की एक बेहद संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।
ReplyDeleteदीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर
ग्राम-चौपाल में आपका स्वागत है
http://www.ashokbajaj.com/2010/11/blog-post_06.html
आत्मविश्वास जब तक है हर कोई जूझ सकता है ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteभावप्रवण रचना।
ReplyDeletebahti hui bhaav yatra!
ReplyDeletesundar!!
इज्तराब ka meaning kya hota hai ? kai baar padha...Vandana kahin nazar nahi aai....Bahut sensitive hai
ReplyDelete@ priya..ijtraab = tadap ya gam
ReplyDeletethanks :)