Friday, September 17, 2010

सांझ कि बरसात



देख के नन्ही नन्ही बूँदें

परिंदों को मस्ती छाई ..

भीगी भीगी सी सांझ ने

जैसे पायल सी छनकाई...


ना सागर ने तपन उठाई

ना शफक पर रौशनी छाई

बादलो कि ओट लेकर

आज चुपके से रात आयी..


कुछ बूंदे खिड़की पर, मेरी

सुधियों से मिलने आयीं

मन तो जाने कहाँ सो गया

बैरन अंखियों ने नींद गवाई !!

vandana

9/16/2010

9 comments:

  1. सुन्दर रचना । बधाई।

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  2. ohh... in baarish ka to poochiye hi mat jab tak na ho to bahut suhani lagti hain....
    har shaam ko un nanhi boondon ka intzaar rehta hai/......

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  3. बादलो कि ओट लेकर
    आज चुपके से रात आयी..
    कोमल भावों से सजी कविता, हलके-हलके मन को छू गई।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएं, मनोज कुमार, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

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  4. lajawaab...
    bairan ankhiyon ne neend gawaii...

    I love the simplicity in the notion and the string of words you make.

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  5. ufffffff...shaam, boondh,sagar, badal ka bahana bana kise yaad kiya ja raha hai ......beautiful :-)

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  6. ---------------------------------
    मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
    जरूर आएँ...

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  7. wah....dil garden garden ho gaya...refreshed ho gayi mein padhkar :)

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  8. बहुत बढ़िया सावन में भीगा भीगा.

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  9. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...