देख के नन्ही नन्ही बूँदें
परिंदों को मस्ती छाई ..
भीगी भीगी सी सांझ ने
जैसे पायल सी छनकाई...
ना सागर ने तपन उठाई
ना शफक पर रौशनी छाई
बादलो कि ओट लेकर
आज चुपके से रात आयी..
कुछ बूंदे खिड़की पर, मेरी
सुधियों से मिलने आयीं
मन तो जाने कहाँ सो गया
बैरन अंखियों ने नींद गवाई !!
vandana
9/16/2010
सुन्दर रचना । बधाई।
ReplyDeleteohh... in baarish ka to poochiye hi mat jab tak na ho to bahut suhani lagti hain....
ReplyDeletehar shaam ko un nanhi boondon ka intzaar rehta hai/......
बादलो कि ओट लेकर
ReplyDeleteआज चुपके से रात आयी..
कोमल भावों से सजी कविता, हलके-हलके मन को छू गई।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएं, मनोज कुमार, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
lajawaab...
ReplyDeletebairan ankhiyon ne neend gawaii...
I love the simplicity in the notion and the string of words you make.
ufffffff...shaam, boondh,sagar, badal ka bahana bana kise yaad kiya ja raha hai ......beautiful :-)
ReplyDelete---------------------------------
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ...
wah....dil garden garden ho gaya...refreshed ho gayi mein padhkar :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सावन में भीगा भीगा.
ReplyDeleteBeautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.